
जीवन है संचय असंख्य तुषार कणों का
प्रयत्न करोगे जितना
समेटने का इन्हें
उतना ये बिखर जायेंगे
ह्रदय मलिन कर जायेंगे
व्यथित होकर क्या मिलेगा ?
आकांक्षाओ के कथित क्षितिज पर,
चढ़ना चाहते हो उच्च शीर्ष पर ,
अपने अंक में भरकर सर्वस्व ,
कैसे तुम चढ़ पाओगे ?
त्याग लोभ को चढो धैर्य से ,
क्षितिज पर अवश्य पहूच पाओगे,
शीघ्रता से क्या मिलेगा ?
देखी हर घटना निज दृष्टि से ,
स्वयं कर लेते हो निर्णय इसका ,
'कौन ' सही था 'कौन ' गलत था
नयी दृष्टि से जब देख पाओगे
संशय से दूर हट जाओगे
ह्रदय संतोषमय होगा
व्यर्थ अभिमान से क्या मिलेगा ?
व्यथित होकर क्या मिलेगा ?
व्यथित होकर क्या मिलेगा ?
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