क्षण मेरे और प्रण मेरे ,
साथ नहीं हैं एक दूजे के ,
छूट जाते हैं हाथों से ,
फिसलती रेत की तरह .......
तन और मन का साथ है जैसे,
जुड़ता घटता एक दूजे से ,
बोध नहीं है मन को तन का ,
तन को मन का भान नहीं है,
क्षण मेरे और प्रण मेरे ........
आल्हादित जब कर जाते हैं ,
मन ऐसे जो जुड़े हैं मुझसे,
मेरे दुःख फिर खो जाते हैं,
भंवर में कही ।
मन उनके और मन मेरा जुड़े हैं कैसे ?
एक दूजे से ,
जलधि एक उदधि में जैसे .
क्षण मेरे और प्रण मेरे ...................
प्रण मेरे जब खो जाते हैं ,
सुख उन्हें खो देने का ,
दे जाता है एक नया प्रण मुझे ,
संकल्प कुछ नया करने का
गुंजित मेरा मधुबन है ,
सुन्दर स्वप्नों से भरा ,
अभिहित नवांकुर त्रुशों से
क्षण मेरे और प्रण मेरे ...........