इन चंचल नैनों ने तुमसे कुछ कहना चाहा,
इस गुंजित मधुबन में क्या तुमने रहना चाहा ?
नैनों के इस अपराध पे मैंने कहा इस दिल से,
कौन है जो छुपा हुआ है ?
अपने आज में महक रहा है..
मेरे समक्ष आने में उसे क्या इनकार है ?
क्या वह भी मेरी तरह कुंठाओं से लाचार है ?
उसके अस्तित्व की कल्पना से ,
मैं रोमांचित हो उठती हूँ ,
क्या वह वैसा ही होगा जैसा मैं सोचती हूँ ?
सोचती हूँ ,
अगर वह है तो ,
इसी धरा पे रहता होगा,
मेरी तरह वह भी "किसी " के विषय में सोचता होगा।
गर वो मुझे स्वीकार हुआ तो क्या मैं हाँ कह पाऊँगी ?
क्या मैं उससे मुक्त कंठ से अपनी वार्ता कर पाऊँगी?
वह भी अपने किसी एकांत पल में,
सोचता होगा "किसी " व्यक्तित्व के विषय में,
जिसके अपनेजीवन में पदार्पण का उसे इंतजार होगा ,
उसे भी अपनी इस अभिव्यक्ति का पूरा अधिकार होगा।
यह संशय मेरे जीवन का सबसे बड़ा संशय होगा,
जिससे निकल पाना मेरे लिए असंभव होगा ।
सोचती हूँ ह्रदय की
चंचलता को नैनों में ही रहने देना होगा ,
उसकी सहज अभिव्यक्ति का इंतजार मुझे करना होगा...
इंतजार मुझे करना होगा....
इंतजार मुझे करना होगा....!!
This blog is collection of my old and new poems written in span of last 12 years... they are posted as they were originally ..no alteration... being in Maharashtra since almost 7 years I have lost touch with HINDI ...my favorite language... therefore trying to reconnect /feel connected via blog..!
Saturday, November 11, 2000
Wednesday, November 8, 2000
स्वप्न
स्वप्न सलोने आते क्यों हैं?
अनंत इच्छाओं को वे,
जागृत करके जाते क्यों हैं?
स्वप्न सलोने आते क्यों हैं?
अस्तित्वहीन से वे विचार,
अकल्पनीय से वे आचार,
कभी पूर्ण तो कभी अधूरे,
प्रश्नचिन्ह को लिए संग में,
मोहित करके जाते क्यों हैं?
स्वप्न सलोने आते क्यों हैं?
कभी विकराल भयानक से,
सारी रात जगाने वाले,
कभी परियों के संग हमे भी,
परीलोक ले जाने वाले....
कभी असंभव कभी अघटित,
अप्राप्य , अमूल्य , इष्ट वस्तु का,
मन में मोह जागते क्यों हैं ?
स्वप्न सलोने आते क्यों हैं?
स्वप्नों के वे भाव भयानक,
स्वप्नों के वे मधुर कथानक,
अपरिमित ब्रम्हांड के वे,
ध्रुड रहस्य उलझाते क्यों है?
स्वप्न सलोने आते क्यों हैं?
स्वप्न सलोने आते क्यों हैं?
अनंत इच्छाओं को वे,
जागृत करके जाते क्यों हैं?
स्वप्न सलोने आते क्यों हैं?
अस्तित्वहीन से वे विचार,
अकल्पनीय से वे आचार,
कभी पूर्ण तो कभी अधूरे,
प्रश्नचिन्ह को लिए संग में,
मोहित करके जाते क्यों हैं?
स्वप्न सलोने आते क्यों हैं?
कभी विकराल भयानक से,
सारी रात जगाने वाले,
कभी परियों के संग हमे भी,
परीलोक ले जाने वाले....
कभी असंभव कभी अघटित,
अप्राप्य , अमूल्य , इष्ट वस्तु का,
मन में मोह जागते क्यों हैं ?
स्वप्न सलोने आते क्यों हैं?
स्वप्नों के वे भाव भयानक,
स्वप्नों के वे मधुर कथानक,
अपरिमित ब्रम्हांड के वे,
ध्रुड रहस्य उलझाते क्यों है?
स्वप्न सलोने आते क्यों हैं?
स्वप्न सलोने आते क्यों हैं?
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