Saturday, November 11, 2000

अभिव्यक्ति

इन चंचल नैनों ने तुमसे कुछ कहना चाहा,
इस गुंजित मधुबन में क्या तुमने रहना चाहा ?
नैनों के इस अपराध पे मैंने कहा इस दिल से,
कौन है जो छुपा हुआ है ?
अपने आज में महक रहा है..
मेरे समक्ष आने में उसे क्या इनकार है ?
क्या वह भी मेरी तरह कुंठाओं से लाचार है ?


उसके अस्तित्व की कल्पना से ,
मैं रोमांचित हो उठती हूँ ,
क्या वह वैसा ही होगा जैसा मैं सोचती हूँ ?
सोचती हूँ ,
अगर वह है तो ,
इसी धरा पे रहता होगा,
मेरी तरह वह भी "किसी " के विषय में सोचता होगा।
गर वो मुझे स्वीकार हुआ तो क्या मैं हाँ कह पाऊँगी ?
क्या मैं उससे मुक्त कंठ से अपनी वार्ता कर पाऊँगी?


वह भी अपने किसी एकांत पल में,
सोचता होगा "किसी " व्यक्तित्व के विषय में,
जिसके अपनेजीवन में पदार्पण का उसे इंतजार होगा ,
उसे भी अपनी इस अभिव्यक्ति का पूरा अधिकार होगा।


यह संशय मेरे जीवन का सबसे बड़ा संशय होगा,
जिससे निकल पाना मेरे लिए असंभव होगा ।
सोचती हूँ ह्रदय की
चंचलता को नैनों में ही रहने देना होगा ,
उसकी सहज अभिव्यक्ति का इंतजार मुझे करना होगा...
इंतजार मुझे करना होगा....
इंतजार मुझे करना होगा....!!

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