Sunday, March 30, 2003

सत्य

विकल्प ही नहीं ,
छिटकने का सत्य से दूर ,
जब कोई ,
मान लो उसे जो शाश्वत है सत्य है ,
अभिन्न एक हल है ,
तुम्हारे तीव्र अंतर्द्वंद का ,
विकल्प ही नहीं......

कब तक असत्य के सहारे ,
इस तिनके की सवारी कर ,
हवा में बहोगे..
आंधियो के सहारे ,
कभी यहाँ , कभी उस जहाँ ,
मान लो उसे जो शाश्वत है ,
सत्य है ....

गुजरना होगा सत्य को भी ,
अग्निपरीक्षा से एक दिन ,
दे देना साक्ष्य तब तुम भी ,
देते क्यों हो अब ,
जब अर्थ नहीं कोई प्रमाण का ,
अनुरोध भी नहीं ....

विकल्प ही नहीं ,
जब कोई  ,
छिटकने का सत्य से दूर,
विकल्प ही नहीं .......
 

 

Saturday, March 8, 2003

अप्राप्य

 क्षनान्श  अपने जीवन का
 क्या अर्पित नहीं कर सकते 
हम अपने अप्राप्य को 

गतांक किसके जीवन का 
उद्वेलित नहीं कर देता 
मन के सुप्त  भाव को 
 
प्रेम  घट जाता  है समीपता से 
मोह बढ़ता है दूर कही बैठे उस 
सुन्दर स्वप्न "अप्राप्य " के प्रति 
 
निर्बल मन व्याकुल कर देता है हठाट ही 
उसे पाने के लिए 
निकटता का विकर्षण 
अकारण ही जोड़ देता है मन 
जीवन के गतांक से 

व्यथित कर हमे 
शतांश ले जाता है 
लोभी मन किसी नवांक हेतु 


पारितोषिक हैं कुछ ओस कण नयनो में 
खड़े हैं हम 
मिथ्या स्मित ओढ़े सनद में 
अर्पित करके 
क्षनान्श  अपने जीवन का
अपने अप्राप्य को



 

Sunday, January 5, 2003

झिलमिलाते सितारे



झिलमिलाते सितारे ,
आकाश की अनंत सीमा के परे
झांकते देखते हमें, 
प्यारे लगते हैं खुले आसमान के तले
अभिमान है अपनी आभा का जिन्हें...

        झिलमिलाते सितारे,
        अमूल्य है उन नेत्रों के भले
        बरबस ही छलक पड़ते हैं
        किसी आत्मीय की स्मृति के साथ
        अविस्मरनीय घटनाओ की याद
        ह्रदय की गहराईओं में छिपे
        झाकते -देखते हमे,
        प्यारे लगते हैं ये भी
        आकाश की अनंत सीमा को तुच्छ करते


झिलमिलाते सितारे,
मन मयूर के सुखद स्वप्नों के साथ
किसी दुर्दांत सत्य से जब हो दो- चार हाथ
किसी अभिन्न की जब चुभती है बात
अपने अनन्य से वार्ता के बाद,
भावनाओ की गहरायियो के तले
प्यारे लगते हैं
मत रोको इन्हें
छलक जाने दो इन्हें ...





झिलमिलाते सितारे ,
आकाश की अनंत सीमा के परे