meri paati
This blog is collection of my old and new poems written in span of last 12 years... they are posted as they were originally ..no alteration... being in Maharashtra since almost 7 years I have lost touch with HINDI ...my favorite language... therefore trying to reconnect /feel connected via blog..!
Friday, October 20, 2023
random musings
Sunday, May 15, 2005
hastakshar
पन्नो पर जीवन के ?
हस्ताक्षर उनके जो करीब हैं ,
और उनके जो अपरिचित हैं अब तक ,
अपरिचित मुझसे /
अपरिचित स्वयं से .....
हस्ताक्षर मेरे उनके जीवन पर ,
होंगे क्या उतने ही गहरे /
भेद भरे ?
आरम्भ है एक स्मित से ,
स्वागत , नयनो के रास्ते ,
आकांक्षाओं के बढ़ाते ही /
परिचय होता है एक अपरिचित मन से ,
छिपा बैठा है उनके भीतर ,
वेदना से भरा ,
स्वयं से अजान , बोध के परे .....
रहस्यमय हस्ताक्षर उनके ,
सहेज के रखे हैं मैंने ,
परिचय की आशा में ….
Thursday, February 26, 2004
क्षण और प्रण
क्षण मेरे और प्रण मेरे ,
साथ नहीं हैं एक दूजे के ,
छूट जाते हैं हाथों से ,
फिसलती रेत की तरह .......
तन और मन का साथ है जैसे,
जुड़ता घटता एक दूजे से ,
बोध नहीं है मन को तन का ,
तन को मन का भान नहीं है,
क्षण मेरे और प्रण मेरे ........
आल्हादित जब कर जाते हैं ,
मन ऐसे जो जुड़े हैं मुझसे,
मेरे दुःख फिर खो जाते हैं,
भंवर में कही ।
मन उनके और मन मेरा जुड़े हैं कैसे ?
एक दूजे से ,
जलधि एक उदधि में जैसे .
क्षण मेरे और प्रण मेरे ...................
प्रण मेरे जब खो जाते हैं ,
सुख उन्हें खो देने का ,
दे जाता है एक नया प्रण मुझे ,
संकल्प कुछ नया करने का
गुंजित मेरा मधुबन है ,
सुन्दर स्वप्नों से भरा ,
अभिहित नवांकुर त्रुशों से
क्षण मेरे और प्रण मेरे ...........
Sunday, March 30, 2003
सत्य
Saturday, March 8, 2003
अप्राप्य
Sunday, January 5, 2003
झिलमिलाते सितारे

झिलमिलाते सितारे ,
आकाश की अनंत सीमा के परे
झांकते देखते हमें,
प्यारे लगते हैं खुले आसमान के तले
अभिमान है अपनी आभा का जिन्हें...
झिलमिलाते सितारे,
अमूल्य है उन नेत्रों के भले
बरबस ही छलक पड़ते हैं
किसी आत्मीय की स्मृति के साथ
अविस्मरनीय घटनाओ की याद
ह्रदय की गहराईओं में छिपे
झाकते -देखते हमे,
प्यारे लगते हैं ये भी
आकाश की अनंत सीमा को तुच्छ करते
झिलमिलाते सितारे,
मन मयूर के सुखद स्वप्नों के साथ
किसी दुर्दांत सत्य से जब हो दो- चार हाथ
किसी अभिन्न की जब चुभती है बात
अपने अनन्य से वार्ता के बाद,
भावनाओ की गहरायियो के तले
प्यारे लगते हैं
मत रोको इन्हें
छलक जाने दो इन्हें ...
झिलमिलाते सितारे ,
आकाश की अनंत सीमा के परे
Tuesday, September 24, 2002
मेरा ईश्वर

जब कभी ईश्वर के अस्तित्व पर प्रश्न उठता है
अगला प्रश्न उठता है " यह प्रश्न कैसे ? "
क्या मुझे विश्वास नहीं
पंछियों के मधुर कलरव पर ?
आकाश की अनंत सीमा पर ?
तरु-वृन्दों की निश्छलता पर ?
जुगनू की जगमगाहट पर?
क्या मुझे विश्वास नहीं ?
इस असंख्य जनसमूह की एकरूपता पर
इन मानवीय रिश्तों की मधुरता पर ?
स्वयामंगों के निर्दोष संचलन पर ?
विविध जीवो के विचित्र संकरण पर ?
क्या मुझे विश्वास नहीं?
इस तपोवन पर?
मनुष्य के अथक श्रम पर?
मानव मात्र के कर्म पर?
इस निर्विवाद जीवन पर...
फिर ईश्वर के होने पर ,
प्रश्न कैसे ?
इश्वर यही कहीं है,
क्रमिक घटनाओ से मुझे उबारता,
स्वयम ही अपने स्वर को निखारता,
अटल अचल समरूप है वह,
वह हर कही है,
प्रश्नों की सीमा से परे है वह,
वह यही कही है,
वह यही कही है...